एक साधारण से शक्ल सूरत वाली एक साँवली सी लड़की जिसका जन्म एक साधारण से परिवार में हुआ l छः भाई बहनों में पांचवे नम्बर पर थी वह और उसका नाम रखा गया शन्नो l
शन्नो यानि कि मैं l बचपन से अपने साँवले रंग की वजह से एक हीन भावना से भरी थी l अपने रिश्तेदारों में अपनी हम उम्र बहनों का अपने से बेहतर होना देखकर मैं मन ही मन संकुचित रहती थी l जिसकी वजह से रिश्तेदारों, पड़ोसियों क सामने पड़ने से कतराती थी l आमना सामना हो जाने पर शर्म से पानी पानी हो जाती और ज़बान से बोल नहीं फूटते थे l
पर अपनी आंतरिक शक्ति और अंदर छिपी प्रतिभा का मुझे एहसास था l लेकिन मेरा संकोच मेरी हर प्रतिभा पर भारी पड़ जाता था कहीं अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करने का अवसर मिलता तो भी संकोच वश मेरे कदम आगे नहीं बढ़ पाते थे l
पर कब तक?
कब तक मैं अपनी प्रतिभाओं का गला घोंट घोंट कर जी पाती l
मेरे मन की बेचैनी बढ़ने लगी l मैं आत्मविश्लेष करने लगी, और मैंने देखा कि मुझसे ज़्यादा संवाले रंग वाली लड़कियों के अंदर किसी भी प्रकार का संकोच या हीन भावना नहीं है तो मुझे एहसास हुआ कि यह मेरी अपने प्रति नकारात्मक विचार रखने मात्र का प्रभाव है l दुनिया प्रतिभा की कद्र करती है, और प्रतिभा का रंग रूप से कुछ लेना देना नहीं होता है l
सत्य है कि यदि इंसान ईमानदारी पूर्वक अपनी कमियों को स्वयं ढूंढ कर उसे दूर करने का प्रयत्न करता है तो उसे कामयाब होने से कोई नहीं रोक सकता है l
मैंने अपने संकोच को त्याग कर अपना आत्मविश्वास बढ़ाने की शुरुआत कर दी l दिल में जो करने की इच्छा होती उसे तुरंत ज़ाहिर करने लगीl
स्वाभाव संवेदनशील था तो भावनाओं ने हाथ में कलम थमा दिया , और मैं अपने भावों को, अपने विचारों को शब्दों के रूप में कागज़ पर उतारने लगी l मेरे भाव कहानी और कविता के रूप में डायरी में इकट्ठे होने लगे l
जब मैं बारहवीं क्लास में थी तो मैंने अपनी एक कहानी रेडियो स्टेशन पर भेज़ी lमेरी कहानी वहाँ सेलेक्ट हुई और मुझे रिकॉर्डिंग के लिए वहाँ बुलाया गया l
जो लड़की अपनी बात कहने से पूर्व दस बार थूक घोंट कर अपना गला तर करती थी उसने रेडियो स्टेशन में एक बार में ही अपनी रिकॉर्डिंग पूरी कर ली l
यह उस समय की बात है जब रेडियो ही मनोरंजन का एक मात्र साधन हुआ करता था और उसे हर घर में बड़े चाव से सुना जाता था l
मेरी कहानी दूर दूर के मेरे रिश्तेदारों ने सुनी और मुझे इतनी सराहना मिली की मेरा आत्मविश्वास बढ़ने लगा l श्रोताओं की फरमाइश पर उस कहानी का तीन बार प्रसारण हुआ था l कहानी लोगों द्वारा इतनी पसंद की गई कि एक बार एक विद्यालय के वार्षिकोत्सव में उस कहानी का नाट्य रूपान्तर कर उस पर नाट्य मंचन कराया गया l
अपनी लिखी पहली कहानी को मिले लोकप्रियता ने मेरा हौसला और आत्मविश्वास कुछ यूं बढ़ाया कि कागज़ और कलम मेरे जीवन का श्रृंगार ही बन गए l
मैं लिखने लगी l कहानी,कविता, लेख l और देश के विभिन्न समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में मेरी लेखनी छपने लगी l कॉलेज के दौरान स्टेज पर गाने,नृत्य और नाट्य मंचन हर एक में मैं पार्टिसिपेट करने लगी l
लेखनी चलती रही, आत्मविश्वास बढ़ता रहा l जैसे जैसे उम्र की सीढ़िया चढ़ती गई जीवन के प्रति सकारात्मकता बढ़ती गई और ‘ख़ुद के लिए जिए तो क्या जिए !’की भावना विकसित होती गई l दूसरों की ख़ुशी के लिए कुछ कर पाऊँ यह भाव बहुत ख़ुशी देने लगा l दूसरों की मदद करने का कोई भी अवसर मैं अपने हाथ से जाने नहीं देती l घर परिवार हो या रिश्तेदार या पडोसी l मुझे हर एक के लिए कुछ कर के ख़ुशी हासिल करना बहुत अच्छा लगता है मुझे l
ससुराल में ‘आदर्श बहू‘ और ननद देवर से ’भाभी माँ ’का दर्ज़ा पाकर अपने माता पिता के दिए संस्कारों पर गर्व करती हूँ l
मनोविज्ञान में एम. ए और बी .एड की डिग्री होने के बावजूद मैंने होम मेकर होना चुना क्यूंकि मेरा मानना है कि एक सुशिक्षित स्त्री यदि अपने बच्चों को सुसंस्कृत करती है तो वह एक घर ही नहीं बल्कि स्वस्थ समाज और देश के निर्माण में अपना योगदान देती है l बच्चों की परवरिश के साथ साथ मैं अपने व्यक्तिक्त को निखारने का प्रयत्न भी साथ ही साथ करती रही l
मेरे दो कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं और तीन पुस्तके प्रकाशन के लिए तैयार हो रही हैं l कुरीतियों और अंधविश्वास का विरोध करती हूँ l और ऐसी हर बेड़ियों और कुरीतियों को तोड़ने का प्रयास करती हूँ जो समाज और ख़ासकर स्त्रियों के प्रगति में बाधक बनते हैं l
समाज में सकारात्मकता के प्रचार प्रसार, दिंन प्रतिदिन बढ़ रहे अवसाद, दिखावा ,असंतोष , सामाजिक पतन के कारणों, खुशियों के मंत्र ढूढने जैसे अनेक मुद्दों पर चर्चा करने के लिए मैंने ‘मंगल भव 24’नाम से एक मंच बनाया है जिस पर देश के प्रसिद्ध साहित्यकारों और विचारकों के साथ अलग अलग विषयो पर फेसबुक लाइव होकर चर्चा करती हूँ , और कोशिश करती हूँ कि हमारी उस चर्चा से समस्याओं से जूझ रहे लोगों को समाधान मिल सके l
जीवन पथ पर चलते चलते अचानक एक मोड़ पर एक ऐसा ठहराव बीमारी का रूप रख कर आया था कि कुछ पल के लिए तो दुनिया हिल गई थी किन्तु ईश्वर की असीम कृपा और उन पर असीम आस्था ने और अपने धैर्य और आत्मविश्वास ने मुझे जीवन के नये रूप से परिचित कराया l
अपनी सकारात्मकता और अपनी लेखनी दोनों का साथ उस कठिन दौर में भी मैंने पकडे रखा था l
‘न मुँह छिपा के जिओ और न सर झुका के जिओ ’
‘कभी किसी को मुकम्मल ज़हाँ नहीं मिलता ’
‘और ये मत सोचो कल क्या होगा जो भी होगा अच्छा होगा ’l
ये तीन फ़िल्मी गाने मेरे जीवन के मंत्र हैं और सदैव मेरे लिए प्रेरणा का काम करते हैं l